भारतीय सुदूर संवेदन कार्यक्रम उपयोगकर्ताओं की जरूरतों से प्रेरित है। वस्तुतः, पहली सुदूर संवेदन आधारित पायलट परियोजना वर्ष 1970 में केरल में नारियल की जड़ मुरझाने के रोग की पहचान के लिए शुरू की गई थी। इस पायलट परियोजना ने भारतीय सुदूर संवेदन (आईआरएस) के उपग्रहों के विकास का नेतृत्व किया। देश और विश्व के विभिन्न उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं को विविध आकाशीय, वर्णक्रमीय और कालिक विभेदनों में आवश्यक डेटा उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न किस्म के उपकरण के साथ आईआरएस उपग्रहों प्रमोचित किए गए हैं।
उन्नत अनुसंधान फसल की उपज और मौसम का पूर्वानुमान, वातावरण गति-विज्ञान, समुद्रों, तटों और पारिस्थितिकी तंत्र जैसे अनुप्रयोगों के लिए इमेज प्रोसेसिंग और जीआईएस उपकरण का उपयोग कर संख्यात्मक और स्थानिक मॉडलिंग और विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए माइक्रोवेव डेटा के उपयोग पर केंद्रित है।
इस केंद्र में विकसित भू प्रेक्षण अनुप्रयोग केन्द्र और राज्य सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण घटक हैं।
केंद्र भू प्रेक्षण के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास में प्रयत्नशील है :
- भूविज्ञान
- कृषि
- पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन
- भौतिक महासागर विज्ञान
- जैववैज्ञानिक महासागर विज्ञान
- वायुमंडल
- निम्नतापमंडल
- जलमण्डल
- अंशांकन एवं वैधीकरण