सैक भूमि पर जलविज्ञान संबंधी मॉडलिंग और अनुप्रयोगों से संबंधित अध्ययन करता है। इसमें मैदान से राष्ट्रीय स्तर तक के लिए उपग्रह से जल-मौसम संबंधी मापदंडों की प्राप्ति और जल विज्ञान प्रक्रियाओं की मॉडलिंग शामिल हैं। उपग्रहों और मॉडलों के माध्यम से उपलब्ध जल संसाधनों का सामयिक और विश्वसनीय आकलन देश में जल प्रबंधन की रणनीतियों चिंतन करने के लिए महत्वपूर्ण इनपुट प्रदान करता है।राष्ट्रीय महत्व के अध्ययनों में से कुछ नीचे वर्णित हैं:

सतही अपवाह मॉडलिंग:संशोधित वक्र नंबर मॉडल का प्रयोग कर एक राष्ट्रीय स्तर की सतही अपवाह मॉडलिंग की गई थी। 5x5 किलोमीटर की ग्रिड सेल आकार में वर्षा, मिट्टी की बनावट, भूमि कवर प्रकार, ढलान आदि जानकारी संसाधित की गई। यह अनुमान लगाया गया कि 35 वर्ष की अवधि (1971-2005) का आकलन करने पर औसत 33.8% वर्षा जल सतही अपवाह के रूप में परिवर्तित हुआ। अपवाह में परिवर्तन क्षेत्र की जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति संवेदनशीलता को समझने के लिए बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं।
अंतर्देशीय जल निकायों के लिए रडार द्वारा तुंगतामापन:सैक विभिन्न नदियों (गंगा, गोदावरी, ब्रह्मपुत्र, गंडक, कोसी, यमुना, सोन, घाघरा आदि) और चयनित प्रमुख जलाशयों/झीलों (उकाई, राणाप्रताप, बांधसागर, गांधीसागर, सांभर झील आदि) में जल स्तर पर नजर रखने के लिए नियमित रूप से सरल-अल्टिका उपग्रह डेटा का करीब-करीब वास्तविक समय में उपयोग करता है। इसके अलावा, नदी के पुनः प्राप्त जलस्तर का नदी के प्रवाह मॉडलिंग और अन्य अनुप्रयोगों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
बाढ़ और जलवैज्ञानिक सूखा:25-29 जुलाई 2015 के दौरान लगातार वर्षा ने उत्तरी गुजरात और राजस्थान की सीमा के पहाड़ी क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति पैदा की। संकर तकनीक (सीएन और 2डी-थलचर प्रवाह मॉडल युग्मन) का उपयोग करते हुए और वर्षा, भूमि-आच्छादन तथा डीईएम जैसे सुदूर संवेदन द्वारा व्युत्पन्न उत्पादों को एकीकृत जलप्लावन अनुरूपण किए गए। सरल-अल्टिका डेटा का उपयोग कर ब्रह्मपुत्र नदी में 9 जून 2015 को बाढ़ लहर का पता लगाया गया। सरल-अल्टिका डेटा का उपयोग कर उकाई जलाशय पर एक विस्तृत अध्ययन में अप्रैल 2016 में इसी अवधि के दौरान पिछले वर्षों की तुलना में सबसे कम जल स्तर का पता चला।
जल गुणवत्ता:सुदूर संवेदन छवियों में निहित जानकारी का उपयोग पानी के गुणवत्ता घटकों की सही मात्रा निर्धारित करने में किया जाता है। पानी की गुणवत्ता का अर्थ उसकी भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताएँ हैं। पानी की सतह पर प्रदूषण सतह के पानी के वर्णक्रमीय हस्ताक्षर बदल देता है। एविरिस-एनजी कार्यक्रम के तहत बक्सर, बिहार के पास गंगा नदी के पानी के वर्णक्रमीय हस्ताक्षर स्थापित करने के लिए फ़रवरी 2016 में फील्ड अभियान चलाया गया था । पानी की विभिन्न स्थितियों में परावर्तन स्पेक्ट्रम का अनुकरण करने के लिए जल अनुकरण मॉडल का विकास किया जा रहा है।
घट रहे भू-जल का प्रभाव:ग्रेस मिशन से प्राप्त उपग्रह आधारित गुरुत्वाकर्षण विसंगति और अन्य निरीक्षणों के आंकड़ों का उपयोग कर पंजाब और हरियाणा क्षेत्र में भूजल के दोहन पर कई अध्ययन किए गए हैं। भूजल में यह गिरावट सिंचाई प्रथाओं में परिवर्तन लागू करने का कारण बनी है जिसे बहुवर्ष निष्क्रिय माइक्रोवेव (एएमएसआर-ई) मृदा नमी विश्लेषण का उपयोग कर मापा गया है। अध्ययन में इस क्षेत्र में 2002 से 2011 के दौरान सिंचाई पद्धतियों में (वर्षा के अभाव में) कुल 18-20 दिनों की देरी (152 जूलियन दिन से 172 जूलियन दिन) दर्शाई गई।