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प्रेरक व्यक्तित्व


गीतांजली श्री


(12 जून 1957)

कौन कहेगा, किससे, कैसे, उन सारी 'दुश्मनियों' के रहते मेरी भाई से, पति की बहन से, भाभी की जीजा से, माँ की सब बहुओं दामादों से, जिसके चलते हमारा आपस में आना जाना बंद था। बरसों से। एक दूसरे की झुर्रियाती शक्लों को लगभग न पहचानने की नौबत तक जब भूले और भटके कहीं सामना हो जाता, दुकान पे, रेस्त्राँ में, कभी ट्रैफिक की लाल बत्ती पर खड़े
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